कबीरा मन पँछी भया, भये ते बाहर जाय । जो जैसे संगति करै, सो तैसा फल पाय ॥

Monday, March 22, 2010

कुछ आधारभूत बातें


                                      श्री गुरुवें नमः
(1) मानव का श्रेष्टतम गुण है त्याग 
(२)राम कथा चित्र नहीं चित परिवर्तन करती है 
(३) बिना कुछ गवाएं  कुछ पाना असंभव है लेकिन कुछ गँवाकर सब कुछ पाना असंभव नहीं है 
(४)शरण हो जाने पर नहीं अपनाना निर्दयी मनुष्य का काम है
(५)गीता सागर है
(६) प्रेम में ही सुख और शांति है
(७) संदेह का नाश ज्ञान के बिना नहीं हो सकता है
(८) सामर्थ्य के अनुसार सेवा  करना ही  कर्त्तव्य पालन है
(९) हवा के तेज झोके में चिराग को जलाना ही जीवन है
(१०) योग व्यायाम नहीं आराधना है
(११) विलासिता, मनुष्य की मुख्य (प्रथम) शत्रु है
(१२) आत्मा सदैव एकरस है
(१३) प्रभु से अपने संबंध का भान होना ही स्वरुप को जानना है
(१४) कुल का नाश होने से कुल-धर्म नष्ट हो जाता है
(१५) कुल-धर्म नष्ट होने से सम्पुरण कुल में अधर्म फ़ैल जाता है 
(१६) अधर्म फैलने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती है
(१७) स्त्रियों के दूषित होने से वर्णशंकर पैदा होते है
(१८) आत्मा न तो किसी को मारती है, न ही मरती है
(१९) आत्मा का अनुभव स्वयं को ही करना पड़ता है और किसी भी तरह से नहीं हो सकता है
(२०) भोगों के मिलने से महान दुःख आने का मार्ग खुल जाता है
(२१) वास्तविक सुख वही  है, जो दुःख से रहित हो
(२२) अपकीर्ति, अपने कर्त्तव्य-पालन से हटने पर होती है
(२३) पाप, स्वार्थबुद्धि कार्य से लगता है
(२४) समबुद्धि से कोई दोष (पाप) नहीं लगता अपितु दूर हो जाते है
(२५) मानव जीवन स्वभोग के लिए नहीं है, यह तो लोकहित के लिए सेवाकार्य करने हेतु मिला है
(२६) प्रेम परमात्मा का स्वरुप है



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